दस्तावेज जिन्दगी के
जिंदगी भी होशियार थी
वक्त के खेल में..
मै गवार था साहब....
मेरा इस्तमाल बड़ी बखूबी किया....
मेरी जिंदगी में नया कारवा आया था...
सुख दुख का तबादला हुआ था..
दस्तखत करता गया हर पन्ने पर....साहब
जिंदगी के खेल में थोड़ा कच्चा था
जिसमे जिम्मेदारियों का बोझ ज्यादा
दुखो का पहाड़ बहुत बड़ा था...
You are never understand before Feeling