एक कवि दुनिया के साथ-साथ अपनी ख़राबियाँ भी नज़र में रखता है।
मुझमें यही खराबी है
हर रिश्ते बखूभी से निभाता हूं
चाहे मिले ना मुझे इज्जत
उन्हें में मेरे दुआओ याद करता हूं...
मुझमें यही खराबी है
कदर करता हूं उनकी
जो फिक्र करते है मेरी
उनसे मोहब्बत बेइंतहा करता हूं....
मुझमें यही खराबी है
मुझे पास बुलाना नहीं आता
तुम्हे भूलना हो तो भूल जाना मुझे
मुझे तो भूल जाना भी नहीं आता...
मुझमें यही खराबी है
प्यार करता हूं तुझे अभी भी
हो जा तू बेवफा किसी के चाहत में
मुझे वफा के अलावा कुछ नहीं आता...
मुझमें यही खराबी है
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Gajab
ReplyDeleteNice
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